संगिनी …




एक नई सुबह आकर मेरे,
    गालो को छू गई,
    उठकर देखा तो तुम्हारे,
    होठो के निशाँ थे वहाँ

    न जाने क्यू दिल का मेरे,
    गुलशन आज महक उठा
    आँख खुली तो पाया मैंने,
    तुमसे गुलिश्तां जवाँ थे वहाँ

    कुछ बदला सा है मौसम आज,
    कुछ बदले मेरे हुजूर है
    फूलो से कलियों तलक सब,
    उनके नशे में चूर है
    एक चाँदनी रात भर,
    साथ मेरे झूमती रही
    धूप खिली तो पाया मैंने,
    तुम्हारे कदमो के दास्ताँ थे वहाँ

    न जाने यह अंग मेरा,
    कब, कौन, कहा से, रंग गया
    जब होश आया तो पाया मैंने,
    तुम्हारे हांथो के पैमाँ थे वहाँ

    कुछ दिल का मेरे कसूर है,
 
    कुछ छाया उनका सुरूर है 
 
    अब हवा भी यह कह रही,
 
    यह असर उनका जरूर है
 
    एक छाव संग मेरे,
 
    न जाने कब से चल रही 
 
    नजर झुकी तो पाया मैंने,
 
    तुम्हारे ही तो ऐहसान थे वहाँ

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